नवरात्रि में कैसे रखें व्रत
हिन्दू धर्म में नवरात्र का विशेष महत्व है, लोग नौ दिन उपवास रखकर मां देवी की आराधना करते हैं। नौ दिन नौ देवियों की उपासना करने का विधान है। माता की पूजा में तुलसी, आंवला, दूर्वा, मदार और आक के फूल नहीं चढ़ाने चाहिए। लाल रंग के फूल व रंग का प्रयोग करना शुभ माना जाता है। लाल फूल नवरात्र के हर दिन मां दुर्गा को अर्पित करें। शास्त्रों के अनुसार घर में मां दुर्गा की दो या तीन मूर्तियां रखना बद्सुगन माना जाता है। मां दुर्गा की पूजा हमेशा सूखे वस्त्र पहनकर करनी चाहिए। पूजा के समय आपके बाल भी बंधे होने चाहिए। आइये जानते है नवरात्र में किस दिन कौन सी देवी का पूजन होगा किया जाता है।
प्रथम नवरात्र – माँ शैलपुत्री की पूजा
नवरात्र के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जायेगी. क्या है मां शैलपुत्री का रहस्य इस बारे में आपको बताएंगे. उससे पहले हमे ये जान लेना चाहिए कि आज पहले दिन आपको नवरात्रि की पूजा की शुरुआत कैसे करनी है. तो जानते है आज आपको मां की पूजा किस तरह से करनी है। सबसे पहले आपको कलश की स्थापन करनी है, कलश को मिट्टी से भरकर उसमें जौ बोएं, याद रहे मिट्टी में पत्थर नहीं होने चाहिए। इसके बाद मां की मूर्ति के सामने अखंड ज्योति प्रज्वलित करे। और आपको सुबह शाम मां की पूजा और आरती करनी है। नवरात्र का पहला दिन मां शैलपुत्री का दिन है। आपको मां शैलपुत्री की उपासना करनी है।
मां शैलपुत्री कौन हैं….
शैलपुत्री पर्वत राज हिमालय की सुपुत्री हैं, पिछले जन्म में इनका नाम सती हुआ करता था, ये भगवान शिव की धर्म पत्नी थी. सती के पिता दक्ष प्रजापति ने जाने अनजाने भगवान भोले नाथ को अपने घर यज्ञ अनुष्ठान में ना बुलाकर उनका का अपमान कर दिया था. इसी कारण सती ने अपने आपको यज्ञ की अग्नि में समर्पित करके भस्म कर लिया. अगले जन्म में सती शैल पुत्री बनी तथा उन्होंने भगवान शिव से ही विवाह किया। माँ शैलपुत्री को सेहत और स्वास्थ्य की देवी माना जाता है. इसलिए आज मां शैलपुत्री आपको सभी प्रकार की बीमारियों से छुटकारा दिला सकती हैं. आज मां शैलपुत्री की पूजा करने से आपको अच्छी सेहत का वरदान मिल सकता है।
द्वितीय नवरात्र – माँ ब्रह्माचारिणी की पूजा
नवरात्र का दूसरा दिन माँ ‘ब्रह्मचारिणी’ की पूजा का दिन है. इसलिए आज मां दुर्गा के ‘ब्रह्मचारिणी’ स्वरूप की उपासना करने का विधान पुराणों में बताया गया है. मां ब्रह्मचारिणी अपने दाहिने हाथ में माला तथा बाएं हाथ में कमंडल लेकर रखती है. शास्त्रों में बताया गया है कि मां दुर्गा ने पार्वती के रूप में पर्वत राज हिमाल्य के यहां उनकी पुत्री बनकर जन्म लिया। महर्षि नारद के कहने पर उन्होंने अपने जीवन में भगवान महादेव भोलेनाथ को पति के रूप में पाने के लिए बहुत ही कठोर तपस्या की थी। उनकी हजारों वर्षों तक की इसी कठिन तपस्या के कारण ही उनका नाम तपश्चारिणी या ब्रह्मचारिणी पड़ा था।
तृतीय नवरात्र – माँ चंद्रघंटा की पूजा
देवी चन्द्रघंटा देवी दुर्गा के नौ स्वरूपों में तीसरा स्वरूप है। नवरात्र के तीसरे दिन माँ दुर्गा के इन्हीं स्वरूप माँ चन्द्रघंटा की आराधना की जाती है. शास्त्रों में कहा गया है कि माता का यह रूप हमे लोक परलोक के कष्टों से मुक्ति दिलवाने वाला है। माँ चन्द्रघंटा के स्वरुप में माता पहली बार आदि शक्ति की तरह अपने दस हाथों में अस्त्र-शस्त्र लेकर देखाई गई हैं. माता के सभी हाथों में त्रिशूल, धनुष-बाण, शंख, कमंडल, कमल, तलवार तथा गदा है। माता के गले में सफेद फूल की माला शुशोभित हो रही है। ऐसी मान्यता है कि माँ के इस स्वरुप की उपासना करने से मन को असीम शांति प्राप्त होती है. हमारे मन के अन्दर के भय का सर्वनाश होता है. माँ का यह स्वरुप लोभ और अहंकार से मुक्ति दिलवाता करता है। इस दिन कुण्डली साधना करने वाले साधक अपना मन मणि पूरक चक्र में स्थित करने का प्रयास तथा पर्यतन करते हैं. देवी चंद्रघंटा की मन से पूजा करने से भक्तों को अपने प्रयास में आसानी से सफलता मिलती है। मां चन्द्रघंटा के सिर पर शुशोभित चन्द्रमा का अक्ष उनके भक्तों के मन को शांति प्रदान करता है।
चौथा नवरात्र – माँ कूष्मांडा की पूजा
नवरात्र के चौथे दिन देवी माँ कुष्मांडा के स्वरूप की पूजा की जाती है. इस ब्रह्मांड की उत्पत्ति करने के कारण इनका नाम माँ कुष्मांडा पड़ा है. हमारी संस्कृत भाषा में कुष्मांडा को कुम्हड़ कहा जाता हैं. देवी माँ कुष्मांडा की आठ भुजाएं होती हैं. इसलिए इनको अष्टभुजा के नाम से भी जाना जाता है. धनुष, बाण, कमल-पुष्प, कमंडल, अमृतपूर्ण कलश, चक्र और गदा इनके सात हाथों को सुशोभित करते है. इनके आठवें हाथ में सभी प्रकार की सिद्धियों और निधियों को देने वाली जप माला होती है. माँ कुष्मांडा देवी की सवारी शेर है. माँ कुष्मांडा का वास सूर्यमंडल के भीतरी हिस्से में है. सिर्फ यही देवी है जिनके पास सूर्य लोक में रहने की शक्ति है. इनके शरीर का तेज, कांति और प्रभा सूर्य ही के समान है. इनके इसी तेज से दस दिशाएं प्रकाशमान हैं. इस ब्रह्मांड में इन्हीं के तेज का प्रकाश व्याप्त है। माँ कूष्माण्डा देवी अत्यंत सेवा और भक्ति से प्रसन्न होने वाली देवी हैं. यदि हम सच्चे हृदय से इनकी शरण में जाये तो फिर आसानी से परम पद की प्राप्ति हो सकती है। विधि और विधान से माँ के भक्ति के मार्ग पर कुछ ही कदम आगे चलने पर भक्तजनों को उनकी कृपा का आभास होने लगता है. यह दुखों से भरा संसार उनके लिए सुखद और आसन बन जाता है. माँ कुष्मांडा की आराधना मनुष्य को भवसागर से पार उतारने के लिए सबसे आसान मार्ग है।
पांचवां नवरात्र – स्कन्द माता की पूजा
नवरात्र के पांचवें दिन मां स्कंदमाता स्वरुप की पूजा होती है. माँ स्कंदमाता की चार भुजाएं होती हैं. माँ स्कंदमाता अपने दोनो हाथों में कमल पुष्प लिए हुए है. एक हाथ में अपने बेटे कुमार कार्तिकेय को गोद में लिए हुए हैं। देवी माँ स्कंदमाता की सवारी शेर है. यह देवी माँ दुर्गा का बहुत ही ममतामयी रूप माना जाता है. जो भक्त देवी मां के इस रूप का ध्यान और आराधना करता है. उस पर मां अपनी ममता की बरसात करती हैं. उसके हर संकट और दुख को माँ हर लेती है। संतान के सुख की प्राप्ति के लिए जो मां स्कंदमाता की उपासना करते हैं. उन्हें नवरात्र की पांचवी तिथि को लाल वस्त्र में सिंदूर, लाल रंग की चूड़ी, महावर, नेलपालिश, लाल रंग की बिन्दी और सेब तथा लाल रंग के फूल और चावल बांधकर मां की गोद में भरनी चाहिए।
छठां नवरात्र – माँ कात्यायनी की पूजा
नवरात्र के छठे दिन मां कात्यायनी की आराधना होती है, देवी मां कात्यायनी अमोद्य फल देने वाली हैं. नवरात्र के छठे दिन भक्तजन का मन आज्ञा चक्र में रहता है. इस योग साधना में आज्ञा चक्र का बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। इस चक्र में साधक मां कात्यायनी के चरणों में अपना सर्वस्व माँ पे न्यौछावर कर देता है. इस प्रकार भक्तजन को सहज भाव से मां कात्यायनी के दिव्य दर्शन प्राप्त हो जाते हैं। इनका भक्त इस लोक में रहते हुए भी अलौकिक तेज से भरा रहता है। देवी माता कात्यायनी देवताओं और ऋषि मुनियों के कार्यों को करने लिए महर्षि कात्यायन के आश्रम में उत्पन्न हुईं थी. महर्षि कात्यायन ने उन्हें अपनी कन्या के स्वरूप में पालन पोषण किया. इसलिए दुर्गा के इस स्वरूप इस छठी देवी का नाम माँ कात्यायनी पड़ गया. मां कात्यायनी दुष्ट दानवों असुरों और पापी लोगो का नाश करने वाली देवी है. माँ कात्यायनी देवी ने महिषासुर के वध के बाद तीनों लोकों को शुम्भ निशुम्भ जैसे राक्षस साम्राज्य से मुक्ति दिलवाई. इस प्रकार से देवी देवताओं प्रसन्नता से अवगत कराया. दैवीय युग में देवी माँ कात्यायनी दुष्ट राक्षसों को अपने दिव्य तेज से ही ख़तम कर देती थीं।
मां कात्यायनी की पूजा
देवी मां कात्यायनी की पूजा की विधि पहले की ही तरह सरल है. जो भक्त कुण्डलिनी जागृत करने के लिए देवी माँ की उपासना में समर्पित हैं. उन लोगों को मां कात्यायनी जी की सभी प्रकार से पूजा आराधन करनी चाहिए. फिर अपने मन को आज्ञा चक्र में स्थापित करने के लिए देवी मां का आशीर्वाद लेना चाहिए. और इसके बाद साधना के लिए बैठना चाहिए. देवी मां कात्यायनी की भक्ति से मनुष्य को कर्म, काम, अर्थ तथा मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। देवी माँ कात्यायनी स्तोत्र का पाठ और देवी माँ कात्यायनी के कवच का पाठ भक्त को अवश्य रूप करना चाहिए. नवरात्री में देवी माँ दुर्गा सप्तशती पाठ का किया जाना भक्तों के लिए बेहद लाभ दायक सिद्ध हो सकता है।
सप्तम नवरात्र – माँ कालरात्रि की पूजा
नवरात्र का सातवां दिन देवी मां कालरात्रि का दिन है. देवी मां के सातवें रूप की आराधना मानव के अन्दर की तामसी शक्तियों का सफाया करती है. तामसी शक्तियों की समाप्ति के साथ ही मानव के अन्दर कल्याण कारी गुणों का आगमन होता है। देवी माँ दुर्गा का संघारक रुप माँ कालरात्रि को समर्पित है. इसी रुप में माँ आदिशक्ति ने शुम्भ ओर निशुम्भ नाम के दुष्ट राक्षसों का वध किया था. जो लोग माँ कालरात्रि के इस रूप की आराधना करते है उनके सभी दुख दर्द दूर होते हैं। देवी माता कालरात्रि की चार भुजाएं हैं. देवी माता अपने ऊपर वाले हाथ से भक्तों को वरदान तथा नीचे वाले हाथ से अभय दान करती हैं. बायीं तरफ के ऊपर के हाथ में तलवार है. यह हमेशा गधे पर सवार रहती हैं. देवी मां कालरात्रि का स्वरूप देखने में बहुत डरावना और भयंकर लगता है. लेकिन ये हमेशा शुभ फल देने वाली माता हैं. इसीलिए हमारे ग्रंथो में देवी मां कालरात्रि को शुभंकरी कहा जाता है.
मां कालरात्रि की पूजा तांत्रिक क्रियाओं के लिए
देवी मां कालरात्रि की पूजा अन्य दिनों की तरह ही की जाती है. लेकिन रात में विशेष विधान के साथ देवी माँ की अराधना की जाती है. अनेक प्रकार की मिठाई देवी को चढाई जाती है. सप्तमी की रात सिद्धियों को देने वाली रात भी कही जाती है।
अष्टम नवरात्र – माँ महागौरी की पूजा
नवरात्र की आठवीं तिथि को मां दुर्गा की आठवीं शक्ति देवी महागौरी की आराधना की जाती है. श्री देवी महापूराण में लिखा है कि माता ने भगवान शिव जी को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी. जिससे कारण उनका रंग बिलकुल काला पड़ गया था. तपस्या से खुश होकर भगवान भोले नाथ ने उनके ऊपर गंगा जल का छिड़काव किया था. जिससे देवी माता का रंग अत्यन्त कांति मान गौरा हो उठा था। तभी से इनका नाम माँ महागौरी पड़ा था. स्वेत रंग देवी माँ महागौरी के वस्त्र और आभुषण स्वेत रंग के हैं। इनकी चार भुजाएं हैं। इनके ऊपर का दाहिना हाथ अभय दान की मुद्रा में है. नीचे के दाहिने हाथ में त्रिशुल लिए है. ऊपर वाले बायें हाथ में डमरू है और नीचे का बाया हाथ वरदान की मुद्रा में है. देवी माता महागौरी की सवारी वृषभ है। शांत रहने वाली माँ महागौरी की पूजा से भक्तों के पाप और संताप और दु:ख नष्ट हो जाते हैं।
अष्टमी के दिन कन्या पूजन विधान
माँ महागौरी की उत्पत्ति के समय वे आठ वर्ष की आयु की थी. इस कारण उन्हें नवरात्र के आठवें दिन पूजने से सुख और शान्ति मिलती है. भक्तों के लिए वे अन्न पूर्णा के समान है. यही कारण है कि इनके भक्त अष्टमी के दिन कन्याओं की पूजा और सम्मान करते है।इस प्रकार वे माँ महागौरी की कृपा प्राप्त करते हैं. माँ महागौरी धन वैभव और सुख शान्ति देने वाली देवी है। कुछ लोग नवमी के दिन भी कन्या पूजा करते हैं. लेकिन अष्ठमी के दिन कन्या पूजन करना ज्यादा श्रेष्ठ है। यदि कन्याओं की संख्या 9 हो तो उत्तम है. न हो तो दो कन्याओं से भी काम चल सकता है।
नवम नवरात्र – माँ सिद्धिदात्री की पूजा
नौवीं शक्ति का नाम माँ सिद्धिदात्री हैं. देवी माँ सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं. नवरात्र के नौवें दिन इनकी आराधना की जाती है. इस दिन विधि विधान तथा पूरी निष्ठा के साथ साधना करने वाले भक्त को सभी प्रकार की सिद्धियों की प्राप्ति होती है। इस दुनिया में कुछ भी उसके लिए मुशकिल नहीं रह जाता है. ब्रह्मांड पर विजय प्राप्त करने की शक्ति उसमें आ जाती है। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, अणिमा, महिमा, गरिमा और वशित्व- ये आठ सिद्धियां हैं. ब्रह्मवैवर्तपुराण के श्री कृष्ण के जन्म खंड में यह अठारह बताई गई है, जो इस प्रकार हैं- 1. अणिमा 2. लघिमा 3. प्राप्ति 4. प्राकाम्य 5. महिमा 6. ईशित्व,वाशित्व 7. सर्वकामावसायिता 8. सर्वज्ञत्व 9. दूर श्रवण 10. परकाय प्रवेशन 11. वाक् सिद्धि 12. कल्पवृ क्षत्व 13. सृष्टि 14. संहारकरण सामर्थ्य 15. अमरत्व 16. सर्वन्यायकत्व 17. भावना 18. सिद्धि।
मां सिद्धिदात्री भक्तों को ये सभी सिद्धियां प्रदान करती हैं. देवी पुराण में लिखे अनुसार भगवान शिव ने इनकी कृपा से ही इन सभी सिद्धियों को प्राप्त किया था. इनकी कृपा से ही भगवान भोले नाथ का आधा शरीर देवी का हुआ था. इसी कारण वे इस लोक में अर्द्धनारीश्वर नाम से जाने जाते है। मां सिद्धिदात्री की चार भुजा हैं. इनकी सवारी शेर है. देवी माँ कमल के फूल पर भी विराजमान होती हैं. इनकी दाहिनी तरफ के नीचे वाले हाथ में कमल का फूल है।