वृहस्पति ग्रह की दशा से मुक्ति के लिए लोगों ने दी आहुति

लग्न की स्थिति के अनुसार ग्रहों की शुभता- अशुभता व बलाबल भी बदलता है। जैसे सिंह लग्न के लिए शनि अशुभ मगर तुला लग्न के लिए अतिशुभ माना गया है। बृहस्पति का साथ छोड़ना अर्थात आत्मा का शरीर छोड़ जाना है। कहते हैं कि हरि रुठे तो गुरु ठौर है किंतु गुरु रुठे तो…कोई ठौर नहीं। देव गुरु बृहस्पति जी को नीति और धर्म तथा विद्या का महान गुरु माना जाता है यह सत्वगुण प्रधान, दीर्घ और स्थूल शरीर वाले, कफ प्रकृति, पीला वर्ण, गोल आकृति, आकाष तत्व प्रधान, बड़े पेट वाले, पूर्वाेत्तर दिशा के स्वामी, बातचीत मे गम्भीरता लिये, स्थिर प्रकृति वाले है यह मीठे रस और हेमन्त ऋतु के अधिष्ठाता है। धनु तथा मीन राशियों के स्वामी भी है यह कर्क राषि के पांच-05 अंशों पर परम उच्च तथा मकर राषि के 05अंश परम नीचे होते हैं। यह एक राशि में लगभग 01 वर्ष 01 माह मे पुरा चक्कर लगा लेते हैं। बृहस्पति पाप ग्रहों से युत या दृष्ट, षड्बल विहीन हो तो ऊँचाई से पतन, शरीर में चर्बी की वृद्धि ,कफ विकार ,मूर्च्छा ,हर्निया,कान के रोग ,स्मृति विकार , जिगर के रोग ,मानसिक तनाव , रक्त धमनी से सम्बंधित रोग करता है। वृहस्पति शान्ति के लिए विशेष वैदिक मंत्रो द्वारा काशी के विद्वान पंडितो द्वारा वैदिक ऋचाओ से यज्ञ हवन कर प्रार्थना की गई.

ग्रेटर नोएडा,12 दिसम्बर। सेक्टर गामा-दो सेक्टर मे संतुरा हॉस्पिटल  के प्रांगण में सर्वजन कल्याणार्थ एवं पर्यावरण संरक्षण तथा शहर के चहुमुखी विकाश हेतु नवकुंडीय नवग्रह शांति महायज्ञ का आयोजन चल रहा है, जिसमें  वृहस्पति ग्रह का विधि विधान से हवन यज्ञ किया गया। वृहस्पति ग्रह की शांति  के लिए आचार्य प्रेमानंद कौशिक महाराज ने बताया कि हिन्दू धर्म में गुरुवार को सबसे बड़ा दिन माना जाता है। इसी दिन मंदिर में जाने का विधान है। जिस तरह गुरु हमारे सौर परिवार की अंतरिक्ष की उल्का पिंडों या अन्य खतरों से रक्षा करता है उसी तरह यह हमारे परिवार की भी रक्षा करता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ग्रहों में सबसे बड़ा ग्रह है वृहस्पति, जिसे गुरु भी कहा जाता है, वृहस्पति, देवताओं के गुरु हैं, शील और धर्म के अवतार हैं, प्रार्थनाओं और बलिदानों के मुख्य प्रस्तावक हैं, जिन्हें देवताओं के पुरोहित के रूप में प्रदर्शित किया जाता है। वे सत्व गुणी हैं और ज्ञान और शिक्षण का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे पीले या सुनहरे रंग के हैं और एक छड़ी, एक कमल और अपनी माला धारण करते हैं। इस अवसर पर महायज्ञ के शुभारम्भ करता एस एस रावत सपत्नी उपस्थित हो हवन पूजन कर धर्मलाभ प्राप्त किये। इस महायज्ञ का आयोजन आचार्य प्रेमानंद कौशिक  महाराज के निर्देश में काशी के महान विद्वानों द्वारा हो रहा है।

विशेष-

लग्न की स्थिति के अनुसार ग्रहों की शुभता-

अशुभता व बलाबल भी बदलता है। जैसे सिंह लग्न के लिए शनि अशुभ मगर तुला लग्न के लिए अतिशुभ माना गया है। बृहस्पति का साथ छोड़ना अर्थात आत्मा का शरीर छोड़ जाना है। कहते हैं कि हरि रुठे तो गुरु ठौर है किंतु गुरु रुठे तो…कोई ठौर नहीं। देव गुरु बृहस्पति जी को नीति और धर्म तथा विद्या का महान गुरु माना जाता है यह सत्वगुण प्रधान, दीर्घ और स्थूल शरीर वाले, कफ प्रकृति, पीला वर्ण, गोल आकृति, आकाष तत्व प्रधान, बड़े पेट वाले, पूर्वाेत्तर दिशा के स्वामी, बातचीत मे गम्भीरता लिये, स्थिर प्रकृति वाले है यह मीठे रस और हेमन्त ऋतु के अधिष्ठाता है। धनु तथा मीन राशियों के स्वामी भी है यह कर्क राषि के पांच-05 अंशों पर परम उच्च तथा मकर राषि के 05अंश परम नीचे होते हैं। यह एक राशि में लगभग 01 वर्ष 01 माह मे पुरा चक्कर लगा लेते हैं। बृहस्पति पाप ग्रहों से युत  या दृष्ट, षड्बल विहीन हो तो ऊँचाई से पतन, शरीर में चर्बी की वृद्धि ,कफ विकार ,मूर्च्छा ,हर्निया,कान के रोग ,स्मृति विकार , जिगर के रोग ,मानसिक तनाव , रक्त धमनी से सम्बंधित रोग करता है। वृहस्पति शान्ति के लिए विशेष वैदिक मंत्रो द्वारा काशी के विद्वान पंडितो द्वारा वैदिक ऋचाओ से यज्ञ हवन कर प्रार्थना की गई.

 

 

 

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