वतन के रखवालों को सलाम

वतन के रखवालों को सलाम

सौ-सौ बार नमन है उनको, उनको बारम्बार प्रणाम।
मातृभूमि की रक्षा में जो, जीवन का दे गये बलिदान।
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आन-बान पर खेल गये वो, देश की शान बचाने को।
प्राणों की आहुति दे गये, अपना धर्म निभाने को।
वतन के रखवालों को सलाम
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सारा देश ऋणि है उनका, देश पै हो गये जो कुर्बान।
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द्रास-कारगिल की चोटी पर, बहुत घनी थी ऊँचाई।
धोखे से जा बैठा दुश्मन, बात समझ कुछ ना आयी।
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रातों-रात घेर लिया दुश्मन, कर दिया उसका काम तमाम
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भारत माँ के उन वीरों नै, दुश्मन के छक्के छुड़ा दिये।
पल की देर लगायी ना फिर, जाके बंकर उडा दिये।
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हो़श ठिकाने लगा दिये जब काँप गया था पाकिस्तान।
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भीषण युद्ध हुआ वहाँ पर फिर, एक घडी ऐसी आयी।
ताबड़तोड़ चलें थी मौत वहाँ पर मँडरायी।
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पीठ दिखाई ना दुश्मन को,चाहे सीने में गोली खायी।
बोल रहे जय भारत माँ की, शरहद पै फौजी भाई।
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दूध लजाया ना जननी का, प्राणों का दे गये बलिदान।
कर्ज चुकाया भारत माँ का, प्राणों का दे गये बलिदान।
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चले गये जिस माँ के बेटे, वो माँ कैसे रहती होगी।
अपने मन की पीडा को वो, माँ कैसे सहती होगी।
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फिर से आना कोख मेरी तुम, मन में ये कहती होगी।
सौ-सौ बार जनूँगी तुम को, कहकर खुश रहती होगी।
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वीर की माता कहलाऊँगी, मन में एक यही अरमान।
???छोटी बहन?
आज तिरंगे में क्यों लिपटे, एक बार बोलो भैय्या।
चिर निद्रा में क्यों सोये हो, आँखें तो खोलो भैय्या।
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सौगंध तुम्हें है राखी की, बहना को गले लगा लो तुम।
उस सूनी पड़ी कलाई में, ये राखी तो बँधवालो तुम।
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छोटी बहना हाथ जोड कर, भैय्या तुम को करे प्रणाम।
??प्रिया-भार्या??
क्या बात हुई है आज यहाँ, इतने सज-धज कर आये हो।
मातृभूमि की माटी का तुम, चन्दन आज लगाये हो।
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फूलों के हैं हार गले में, कोई तीर्थ करके आये हो।
या तुम जननी जन्मभूमि का, कर्ज चुका कर आये हो।
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बरस रहे थे फूल वहाँ, जिस पथ तुम चलकर आये हो।
सब ओर तुम्हारी जय जय थी, क्या पुण्य कमाकर आये हो।
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लगता है तुम मात-पिता का, मान बढ़ा कर आये हो।
क्या भारत माँ के चरणों में, शीश चढ़ा कर आये हो।
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मिटा दिया है दुश्मन को, ये हमें बताने आये हो।
खाई हैं सीने में गोली, वो हमें दिखाने आये हो।
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माँथे की बिंदी अमर हुई, और हो गया अटल सुहाग मेरा।
जनम-जनम में तुम ही मिलना उज्ज्वल हो गया भाग्य मेरा।
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कंधा दूँगी मैं अर्थी को, तुम ले लेना प्रणाम मेरा।
मैं वीर की पत्नी कहलाऊँगी, रोशन होगा नाम तेरा।
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भारत माँ का आज आपने, जग में बहुत बढाया मान।
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भगवत की लेखनी धन्य हुई, वीरों की गाथा गा करके।
पावन हो गयी वाणी भी, उनका यशगान सुना करके।

वीरों को शीश झुका कर के, हम सदा करें उनका सम्मान।
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