-12 हजार फीट की उंचाई पर भारतीय सीमा का आखिरी गांव है माना
ग्रेटर नोएडा,17 फरवरी। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने हस्तशिल्प निर्यात संवर्धन परिषद (ईपीसीएच) की टीम को भारत-चीन सीमा पर स्थित आखिरी गांव-माना में शिल्पियों के कौशल विकास करने के लिए सम्मानित किया। इस कार्यक्रम का आयोजन स्वामी विवेकानंद हेल्थमिशन, नई दिल्ली ने किया। इस अवसर पर विजय कौशल महाराज, रामलाल, कृष्ण गोपाल, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के उपप्रमुख सुरेश सोनी और ईपीसीएच के महानिदेशक राकेश कुमार भी मौजूद थे। इस मौके पर ईपीसीएच के महानिदेशक राकेश कुमार ने कहा कि माना गांव के शिल्पियों के कौशल विकास के लिए ईपीसीएच द्वारा उठाए हर जरूरी कदम को आज प्रोत्साहन मिला है। अपनी बात को विस्तार देते हुए उन्होंने कहा कि माना गांव के हस्तशिल्प उत्पादों में नए डिजाइन और समय की जरुरत के हिसाब से उत्पादों को अनुकूल बनाने में काफी कमी पाई गयी। इन वजहों से यहां के उत्पाद कम बिक पाते थे और यही वजह थी कि यहां के स्थानीय कारीगरों का पलायन भी बहुत बड़ी संख्या में हो रहा है। गौरतलब है कि माना गांव में परपंरागत तौर पर कच्चे ऊन के उत्पाद जैसे पांखी शॉल्स, खेस और दूसरे ऊनी उत्पाद बनाए जाते हैं। आई.एच.जी.एफ- दिल्ली ऑटम फेयर के पिछले संस्करण अक्टूबर 2019 में ईपीसीएच ने एक बड़ा कदम उठाया। ईपीसीएच ने इस मेले में माना गांव के कारीगीरों मेले में लाकर उनके उत्पादों की प्रदर्शित किया। उनके उत्पाद अंतरराष्ट्रीय ट्रेंड के अनकूल बन सकें और उन्हें हाई एंड फैशन आइटम में बदला जा सके इसके लिए भी हर संभव प्रयास किए गये। ईपीसीएच ने इसके लिए मेले से पहले ही बाडमेर और जयपुर के मास्टर शिल्पियों, डिजाइनरों की टीम को माना गांव के कारीगरों के साथ लगाया था। इस प्रयास का परिणाम ये रहा है कि टीम के साथ मिलकर माना गांव के शिल्पियों के बनाए गये हस्तशिल्प उत्पादों को घरेलू के साथ ही विदेशी ग्राहकों से भी बहुत ही अच्छा रिस्पॉन्स मिला। माना गांव के शिल्पियों को बैकवर्ड और फारवर्ड लिंकिंग मिल सके इसके लिए ईपीसीएच हर संभव प्रयास कर रही है। इसके तहत कौशल विकास, डिजाइन विकसित करने, इंफ्रास्ट्रक्चर बनाने, मार्केटिंग लिंकेज देने जैसे कई तरह के काम कर रही है। इस पूरे कार्यक्रम का संचालन स्वामी विवेकानंद हेल्थ मिशन के सहयोग से किया जा रहा है। इस कार्यक्रम को भारत सरकार के कपडा मंत्रालय के हस्तशिल्प विकास आयुक्त के कार्यालय का भी पूरा सहयोग प्राप्त है। कुमार के मुताबिक उत्तराखंड के चमोली जिले में 12 हजार फीट की उंचाई पर स्थित माना गांव में की जा रही इस पूरी कवायद में कारीगरों को डिजाइन, मार्केटिंग, बैकवर्ड फारवर्ड लिंकिंग जैसे बहुत से पहलुओं से परिचित कराया जा रहा है। इसके कई फायदे होने वाले हैं। पहला फायदा होगा कि कारीगरों का पलायन रुकेगा, जो कारीगर चले गये है वो अपनी परंपरागत शिल्प से वापस आकर जुडेंगे, इससे स्थानीय बिक्री के साथ ही निर्यात भी बढ़ेगा।