“एक पृथ्वी, एक स्वास्थ्य एक योग” की अवधारणा केवल एक आदर्श नहीं, बल्कि एक अनिवार्यता-डॉ. शिव ओम आचार्य

The concept of "One Earth, One Health, One Yoga" is not just an ideal but an imperative - Dr. Shiv Om Acharya

आज की दुनिया जिस दौर से गुजर रही है, वहाँ मानव मात्र के समक्ष स्वास्थ्य और अस्तित्व दोनों के प्रश्न खड़े हो गए हैं। जलवायु संकट, महामारी, मानसिक असंतुलन, सामाजिक अलगाव और जीवनशैली से जुड़ी बीमारियाँ एक साथ उभरकर सामने आई हैं। ऐसे समय में “एक पृथ्वी, एक स्वास्थ्य” की अवधारणा केवल एक आदर्श नहीं, बल्कि एक अनिवार्यता बन गई है। इस संकल्पना को वास्तविकता में बदलने का सशक्त माध्यम यदि कोई है, तो वह भारत की प्राचीन योगविद्या है — एक ऐसी विरासत जो शरीर, मन, समाज और प्रकृति के मध्य सामंजस्य स्थापित करने का अद्वितीय विज्ञान है। इसलिए ११वें अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस के सुअवसर पर भारतवर्ष के द्वारा यह थीम सुनिश्चित की गई।

योग को लेकर सामान्यतः यह धारणा होती है कि यह मात्र आसन और प्राणायाम की क्रिया है, किंतु यह समझ अधूरी है। योग जीवन के प्रत्येक क्षेत्र को संतुलित करने वाली अनुशासित जीवन पद्धति है, जिसकी जड़ें भारतीय दार्शनिक परंपरा में गहराई तक समाई हुई हैं। महर्षि पतंजलि ने योग को चित्तवृत्तियों के निरोध के रूप में परिभाषित किया — “योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः” — अर्थात योग आत्म-संयम और जागरूकता का मार्ग है। जब मनुष्य अपने भीतर की विक्षिप्त वृत्तियों को संयमित करता है, तभी वह बाहरी संसार से सामंजस्य स्थापित कर सकता है।

वर्तमान में वैश्विक संकट का मूल कारण यही है कि मानव ने अपने भीतर के अनुशासन को खो दिया है और प्रकृति के साथ अपनी जैविक एकता को भुला बैठा है। आधुनिक जीवनशैली में भोग, भ्रामक सुख और उपभोग की अति ने प्रकृति का संतुलन बिगाड़ दिया है। पतंजलि के यम-नियम — अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह — न केवल आत्म-संयम के सिद्धांत हैं, बल्कि यह पृथ्वी के संरक्षण का भी आधार हैं। विशेषतः ‘अपरिग्रह’ — अधिक संग्रह न करना — आज की उपभोक्तावादी संस्कृति के विरुद्ध पर्यावरण संतुलन की दिशा में अत्यंत आवश्यक संकेत है।

मनुष्य, पशु और पर्यावरण की स्वास्थ्य स्थितियाँ परस्पर जुड़ी हुई हैं, ऐसा चिंतन कर जब विश्व ‘वन हेल्थ’ की बात करता है तब भारतीय शास्त्रों, जहाँ पहले से ही “वसुधैव कुटुम्बकम्” का आदर्श उपस्थित है, का स्मरण आता है। योग इसी भाव को साधना में रूपांतरित करता है। यह मात्र स्वयं की साधना नहीं, समष्टि के कल्याण का उपकरण है।

आज के विज्ञान ने भी यह स्वीकार कर लिया है कि योग का अभ्यास — विशेष रूप से प्राणायाम, ध्यान, योगनिद्रा — न केवल मानसिक तनाव को घटाता है, अपितु अनेक शारीरिक रोगों में भी यह आशाजनक प्रभाव देता है। शोध बताते हैं कि नियमित योगाभ्यास से उच्च रक्तचाप, डायबिटीज, अवसाद, अनिद्रा और हृदय रोगों में सुधार होता है। कोविड-19 जैसी महामारी के दौरान भी यह स्पष्ट हो गया कि जिन लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक थी, वे संक्रमण से बेहतर तरीके से निपट सके — और यह क्षमता बढ़ाने में योग की भूमिका अब शोध-सिद्ध हो चुकी है।

मनुष्य के भीतर जब अनुशासन आता है, तब वह सामाजिक उत्तरदायित्व को भी समझता है। यही कारण है कि योगाभ्यास करने वाला व्यक्ति केवल अपने स्वास्थ्य को नहीं, समाज और प्रकृति की भलाई को भी प्राथमिकता देने लगता है। इसी बोध से “सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः” जैसी प्रार्थनाएं उत्पन्न होती हैं। यह विचारधारा समस्त मानवता को जोड़ती है और इसी में समाहित है “एक पृथ्वी, एक स्वास्थ्य” की सच्ची भावना।

आज के संदर्भ में योग न केवल एक चिकित्सकीय साधन है, बल्कि यह जीवन जीने की एक पर्यावरण-संवेदी और समाज-हितकारी पद्धति है। यह शारीरिक क्रियाओं से आगे बढ़कर जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में संतुलन, स्थिरता और सौहार्द लाता है। यह हमें सिखाता है कि हम प्रकृति के ऊपर नहीं, उसके अंग हैं — और जब तक यह भाव हमारे जीवन में नहीं आता, तब तक कोई भी स्वास्थ्य नीति पूर्ण नहीं मानी जा सकती।

इसलिए जब विश्व योग की ओर आशा की दृष्टि से देख रहा है, तब यह भारत का कर्तव्य भी बनता है कि वह इस अमूल्य ज्ञान को बिना किसी पाखंड के, वैज्ञानिक और दार्शनिक पृष्ठभूमि सहित वैश्विक समाज के सामने प्रस्तुत करे। यह वह क्षण है जहाँ भारत का योगदर्शन न केवल आत्मकल्याण का मार्ग है, बल्कि पर्यावरणीय, सामाजिक और मानसिक संकटों के समाधान का एकमात्र विश्वसनीय विकल्प बनकर उभर सकता है। योग कोई एक दिन का उत्सव नहीं, बल्कि हर दिन का अभ्यास है। यह केवल शरीर को मोड़ने की क्रिया नहीं, दृष्टिकोण को मोड़ने की प्रक्रिया है — ‘बॉडी से माइंड तक और माइंड से बियोंड तक’ की एक यात्रा। और यही यात्रा आज की आवश्यकता है — एक पृथ्वी, एक स्वास्थ्य, एक योग।

डॉ. शिव ओम आचार्य
(योग विशेषज्ञ, शारदा विश्वविद्यालय)

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