मातृशक्ति की सामर्थ्य को नमन

मातृशक्ति की सामर्थ्य को नमन

मातृशक्ति की सामर्थ्य को नमन
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मृतक पति सत्यवान के, लौटा लायी प्राण।
गृह लक्ष्मी तुमको कहें, है सामर्थ्य महान।
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करती हो मंगलचार तुम्हीं, बिगड़ा घर तुम्हीं बनाती हो।
है अकथनीय गाथा तुम्हरी, तुम देश की ज्योति जगाती हो।

सीता सावत्री तुम्हीं तो हो, तुम राधा रूक्मणि रानी हो।
नल की दमयंती तारावति, तुम हरीश चन्द्र की रानी हो।

नव-दुर्गा का रूप तुम्हीं, तुम उमा रमा ब्रह्माणी हो।
श्री राम की तुम्हीं जानकी, शंकर संग भवानी हो।

अनुसूया, कौशल्या, रेनुका देवों की तुम महतारी।
आदि शक्ति जगदम्बा हो तुम जानै ये दुनियाँ सारी।

साम वेद की तुम्हीं ऋचा हो, बीणा की झंकार तुम्हीं।
करूणा, दया की मूरत हो तुम, ममता का संसार तुम्हीं।

महावीरों की जननी हो, कभी महाकाल बन जाती हो।
जौहर की ज्वाला स्वयं जला, तुम पद्मावत कहलाती हो।

जब-जब पाप बढ़े धरती पर, तब-तब तुम्हीं मिटाती हो।
बनकर सिंह वाहिनी दुर्गा, आकर धनुष चढाती हो।

अपने तेज तपोबल से ऐसा करके दिखला दो तुम।
देकर पावन संदेश देश को जीवन ज्योति जगा दो तुम।

मातृशक्ति के चरणों में है वंदन बाम्बार मेरा।
सृष्टि की जननी तुमको अभिनन्दन बारम्बार मेरा।

गुरू गंगा प्रशाद स्वर्ग से कविता ज्ञान बताते हैं
मातृशक्ति की आज कीर्ति भगवत शर्मा गाते हैं।

#सर्वाधिकार सुरक्षित
✍️स्वरचित एवं मौलिक रचना
भगवत प्रशाद शर्मा
गलगोटिया विश्वविद्यालय
ग्रेटर नौएडा (उ० प्र०)

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