शारदा विवि में दंत चिकित्सा में वायरल हेपेटाइटिस पर संगोष्ठी का आयोजन

ग्रेटर नोएडा,11 फरवरी। शारदा विश्वविधालय के स्कूल ऑफ़ डेंटल  साइंस के सार्वजनिक स्वास्थ्य दंत चिकित्सा विभाग और  इंस्टीट्यूट ऑफ लीवर एण्ड बिलियरी साइंसेज,नई दिल्ली के सहयोग से प्रोजेक्ट प्रकाश की सफलता के लिए “दंत चिकित्सा में वायरल हेपेटाइटिस” शीर्षक पर एक दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस संगोष्ठी में मुख्य अतिथि गौतमबुद्ध नगर के मुख्य चिकित्सा अधिकारी, डॉ. अनुराग भार्गव और इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर एंड बिलियरी साइंसेज, नई दिल्ली प्रशासन के प्रमुख डॉ.अनिल अग्रवाल ने अपने अनुभवों से युवा चिकित्सको को सम्बोधित किया। मुख्य अतिथियों का स्वागत शारदा विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ़ डेंटल साइंस के डीन, डॉ. एम. सिद्धार्थ ने किया। शारदा विश्वविधालय के स्कूल ऑफ़ मेडिकल साइंस एंड रिसर्च के प्रो. वाईस चांसलर, डॉ. पी. एल. कोरिहोलू ने मुख्य अतिथियों को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया। शारदा विश्वविधालय के स्कूल ऑफ़ डेंटल साइंस के डीन, डॉ. एम. सिद्धार्थ ने सभी को सम्बोधित करते हुए कहा कि वायरल हेपेटाइटिस लगभग हमेशा एक विशिष्ट हेपेटाइटिस वायरस के कारण होता है। ये सभी वायरस बीमारियों को जन्म देते हैं जो उनकी नैदानिक और रोग संबंधी विशेषताओं में समान हैं और अक्सर विषम या स्पर्शोन्मुख हैं। शारदा विश्वविधालय के स्कूल ऑफ़ मेडिकल साइंस एंड रिसर्च के प्रो. वाईस चांसलर, डॉ. पी. एल. कोरिहोलू  ने बताया कि पीरियडोंटल प्रैक्टिस में हेपेटाइटिस-बी के साथ संक्रमण के क्षेत्र रक्त, लार और नासोफेरींजल स्राव हैं। अंतःक्रियात्मक रूप से, हेपेटाइटिस-बी संक्रमण की सबसे बड़ी एकाग्रता मसूड़े के घाव में होती है। इसके अलावा, पीरियडोंटल बीमारी, रक्तस्राव की गंभीरता, और खराब मौखिक स्वच्छता को एचबीवी के जोखिम के साथ जोड़ा जाता है।

गौतमबुद्ध नगर के मुख्य चिकित्सा अधिकारी, डॉ. अनुराग भार्गव ने बताया कि सभी डिस्पोजेबल आइटम (जैसे, धुंध, सोता, लार बेदखलदार, मुखौटे, गाउन, दस्ताने) को एक अस्तर कचरे में रखा जाना चाहिए। उपचार के बाद, इन वस्तुओं और सभी डिस्पोजेबल कवरों को जैव-खतरनाक कचरे के लिए उचित दिशानिर्देशों का पालन करके इसका निपटारा किया जाना चाहिए।     इंस्टीट्यूट ऑफ लिवर एंड बिलियरी साइंसेज के वाइरस विज्ञान विभाग की डॉ. एकता गुप्ता ने बताया कि एक दंत कार्यालय में, संक्रमण कई मार्गों से हो सकता है, जिसमें रक्त, मौखिक तरल पदार्थ या अन्य स्राव के साथ सीधे संपर्क शामिल है; दूषित उपकरणों, ऑपरेटिव उपकरण, या पर्यावरण परिवेश के साथ अप्रत्यक्ष संपर्क; या मौखिक या श्वसन तरल पदार्थ के या तो छोटी बूंद छींटे या एरोसोल में मौजूद वायुजनित दूषित पदार्थों के साथ संपर्क। हेपेटाइटिस दुनिया भर में तीव्र और पुरानी यकृत संक्रमण, सिरोसिस और प्राथमिक हेपेटोसेलुलर कार्सिनोमा का प्रमुख प्रेरक एजेंट है।   विश्व स्वास्थ्य संगठन से आये डॉ. विमलेश पुरोहित ने बताया कि यदि उपचार के दौरान या बाद में रक्तस्राव की संभावना है, तो प्रोथ्रोम्बिन समय (पीटी) और रक्तस्राव के समय को मापें। हेपेटाइटिस जमावट को बदल सकता है इसलिए तदनुसार उपचार बदलें। शारदा विश्वविधालय के सार्वजनिक स्वास्थ्य दंत चिकित्सा विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. स्वाति शर्मा ने बताया कि दंत चिकित्सा में अधिकांश जोखिमों को रोका जा सकता है, और रक्त संपर्कों के जोखिम को कम करने के तरीकों में मानक सावधानियों और इंजीनियरिंग नियंत्रणों और कार्य अभ्यास के संशोधनों का उपयोग शामिल है। इन दृष्टिकोणों ने हाल के वर्षों के दौरान दंत चिकित्सकों के बीच गंभीर चोटों में कमी आयी है। संगोष्ठी के अंत में विभागाध्यक्ष डॉ. स्वाति शर्मा द्वारा धन्यवाद ज्ञापन किया गया।

Spread the love

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *