ग्रेटर नोएडा। कोरोना महामारी के चलते काफी अभिभावकों को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ रहा है इसके चलते कई लोग शहर छोड़कर गाँव चले गये और उन्हें अपने बच्चों को शहर के स्कूल से हटाकर गाँव के स्कूलों में प्रवेश दिलाने के लिए मजबूर होना पड़ा। कोरोना काल में विद्यालयों को अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। कई स्कूल बन्द हो गये कई में शिक्षकों को हटा दिया गया और कहीं उन्हें केवल 50 प्रतिशत वेतन से ही सन्तुष्ट होना पड़ा। विद्यालयों के सामने एक सबसे बड़ा संकट है, अभिभावकों को लगातार सूचना देने के उपरान्त भी उनकी तरफ से कोई उत्तर का न मिलना। कुछ स्कूलों द्वारा उन्हें ई-मेल, फोन कॉल और और यहां तक कि डाक से भी सूचनाएं भेजी गयी। लेकिन कई के पत्र वापस आ गये, कुछ स्कूलों ने पूरे वर्ष उनके उत्तर का इन्तजार किया लेकिन कोई प्रत्युत्तर नहीं मिलने से परिणाम शून्य ही रहा। फादर एल्विन पिन्टो,प्रधानाचार्य, सेन्ट जोसेफ स्कूल ने बताया कि बारह से सोलह महीने बाद अगर अभिभावक आरटीई (शिक्षा के अधिकार) के नाम पर प्रशासनिक अधिकारी के यहां शिकायत करते हुए विद्यालय के ऊपर बच्चे के प्रोमोशन के लिए दबाव बनाता है तो क्या यह आरटीई का दुरुपयोग नहीं है? आरटीई का मतलब यह तो नहीं है कि अभिभावक अपने बच्चे को पूरे वर्ष/सत्र घर में बिठा कर रखे और इसके परिपेक्ष्य में कोई सूचना भी न दे और सत्र के अन्त में करवट बदलते हुए बच्चे की अगली कक्षा में प्रोन्नति की मांग करने लगे।
दसवीं और बराहवीं की बोर्ड परीक्षाओं का परिणम भी इंटर्नल असेसमेन्ट के आधार पर ही किया गया। जिन बच्चों की कक्षा में 1 प्रतिशत भी उपस्थिति नहीं है न ही कोई परीक्षा दी है ऐसे बच्चों को बोर्ड कैसे प्रोमोट कर सकता है? जिन विद्यार्थियों का पूरे वर्ष कोई अता पत्ता नहीं रहा ऐसे विद्यार्थियों को अन्य की तरह प्रोन्नति दी जाती है तो यह उन बच्चों के प्रति नाइन्साफी होगी जो सालभर दिन-रात मेहनत करते हैं। यदि आरटीई के दबाव में प्रोमोशन किया जाता है तो कल अकारण ही अभिभावकों के बीच समाज में एक सूचना भी जागृत होगी कि स्कूल प्रबन्धन विद्यार्थी के बिना पढ़े अभिभावकों से धन पैसे लेकर बच्चों को अगली कक्षा में प्रोन्नति दे रहे हैं जो विद्यार्थियों के मानसिक स्तर पर बहुत बुरा असर डालेगी। वहीं दूसरी तरफ ऐसी स्थिति में औपचारिक विद्यालय की क्या आवश्यकता, विशेष रूप से ऐसी गतिविधियों के कारण इस पीढ़ी के ज्ञान का स्तर बहुत नीचे गिर जायेगा जो देश की उन्नति में सबसे बड़ी बाधा होगी। वहीं अगर स्कूल इस तरह की सक्रिय गतिविधि में लिप्त होंगे तो औपचारिक विद्यालय का महत्व ही समाप्त हो जायेगा।
विद्यालय प्रबंधन एवं अभिभावकों के बीच समय-समय पर सूचनाओं का आदान-प्रदान नितान्त आवश्यक है फिर भी अगर कोई अभिभावक स्कूल प्रशासन पर गलत करने पर दबाव डालता है तो उनके ऊपर कड़ी से कड़ी कार्रवाही करने की आवश्यकता है। कई स्कूलों ने कई भूलों को नजरदाज करते हुये बच्चों को अगली कक्षा के लिए प्रोमोशन भी दिया है, जिनकी फीस बाकी रही, उनको फीस में छूट देकर आगे पढ़ने का अवसर भी प्रदान किया गया है इसलिए इस विषम परिस्थिति में स्कूल और अभिभावक दोनों का आपसी सहयोग अति आवश्यक है, वहीं विद्या की गरिमा बनाए रखना एवं बाजारीकरण से बचाए रखना समय की वृहद मांग है।
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