ग्रेटर नोएडा,29 जुलाई। भारत सरकार शिक्षा नीति से सम्बंधित यह नया फ्रेमवर्क लाया गया है, वह शिक्षा के क्षेत्र में आने वाला अब तक का सबसे क्रांतिकारी परिवर्तन होगा। डॉ. संध्या तरार, प्रोफेसर, कंप्यूटर इंजीनियरिंग विभाग, गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय का कहना है कि आज ऐसा प्रतीत हो रहा कि भारत गुलामी से सच में आज़ाद हो गया है। भारतीयों की शिक्षा भारतीय मूल्यों व संस्कृति के हिसाब से होगा। नई शिक्षा नीति में जिस तरह प्रयोगात्मक शिक्षा पर ज्यादा ध्यान दिया गया है उससे बच्चों की जो रचनात्मकता इतने लंबे समय से वर्तमान शिक्षा प्रणाली द्वारा कुचली जा रही थी, वह अब नहीं होगा। छात्रों को किताबों के बोझ तले दबाकर नहीं वरन उनमें नमोउन्मेष करने की इच्छा को जाग्रत करने से ही प्रत्येक छात्र राष्ट्र की उन्नति में भागीदारी कर सकेगा। इसके अतिरिक्त विदेशी भाषा में शिक्षा ग्रहण करने का जो अनावश्यक भार भारतीय बच्चों पर लगातार थोपा जा रहा था, उससे भी छात्रों को मुक्ति मिलेगी, और वे अपनी क्षेत्रीय व मातृ भाषा में शिक्षा ले पायेंगे। विदेशी भाषा की बाध्यता को खत्म करके भारतीय बचपन को हीन भावना से निकालकर रचनात्मक व नवीन प्रयोगात्मक शिक्षा की तरफ मोड़ने का केंद्र सरकार का यह प्रयास अत्यंत महत्वपूर्ण कदम है, जो भारत की दिशा व दशा दोनों को बदलने का काम भलीभाँति करेगा।
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क्या है नई शिक्षा नीति में
शिक्षकों के साथ-साथ अभिभावकों को भी जागरूक करने पर जोर, प्रत्येक छात्र की क्षमताओं को बढ़ावा देना प्राथमिकता होगी। वैचारिक समझ पर जोर होगा, रचनात्मकता और महत्वपूर्ण सोच को बढ़ावा मिलेगा। छात्रों के लिए कला और विज्ञान के बीच कोई कठिनाई, अलगाव नहीं होगा। नैतिकता, संवैधानिक मूल्य पाठ्यक्रम का प्रमुख हिस्सा होंगी। नई शिक्षा नीति में संगीत, दर्शन, कला, नृत्य, रंगमंच, उच्च संस्थानों की शिक्षा के पाठ्यक्रम में शामिल होंगे। स्नातक की डिग्री 3 या 4 साल की अवधि की होगी। एकेडमी बैंक ऑफ क्रेडिट बनेगी, छात्रों के परफॉर्मेंस का डिजिटल रिकॉर्ड इकट्ठा किया जाएगा। 2050 तक स्कूल और उच्च शिक्षा प्रणाली के माध्यम से कम से कम 50 फीसदी शिक्षार्थियों को व्यावसायिक शिक्षा में शामिल होना होगा। गुणवत्ता योग्यता अनुसंधान के लिए एक नया राष्ट्रीय शोध संस्थान बनेगा, इसका संबंध देश के सारे विश्वविद्यालय से होगा।