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स्वार्थी मनुष्य अपनी महत्वाकांक्षाओं के लिए प्रकृति का कर रहा है अवैध रुप से दोहन-रेखा कादियान

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पूरे विश्वभर में विश्व पर्यावरण दिवस हर साल 5 जून को मनाया जाता है। इसकी शुरुआत पर्यावरण के मुद्दों पर वैश्विक जागरुकता का उत्थान करने के लिए संयुक्त राष्ट्र महासभा के द्वारा 1972 में की गई थी। विश्व पर्यावरण दिवस एक अभियान है, जो प्रत्येक वर्ष विश्वभर में पर्यावरण के नकारात्मक प्रभावों को रोकने के लिए लोगों को प्रोत्साहित करने के लिए मनाया जाता है। इस अभियान की शुरुआत करने का उद्देश्य वातावरण की स्थितियों पर ध्यान केन्द्रित करने और हमारे ग्रह पृथ्वी के सुरक्षित भविष्य को सुनिश्चित करने के लिए पर्यावरण में सकारात्मक बदलाव का भाग बनने के लिए लोगों को प्रेरित करना है।

इस अभियान का मुख्य उद्देश्य मीडिया और मशहूर हस्तियों की इस कार्यक्रम में भागीदारी के माध्यम से लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरुकता और प्रोत्साहन को बढ़ावा देना है। यह अभियान लोगों को इस कार्यक्रम से बड़ी संख्या में जोड़ने के लिए एक निमंत्रण है, ताकि लोग वातावरण की वास्तविक स्थिति को समझें और पर्यावरण मुद्दों के दुष्प्रभावों के खिलाफ प्रभावी कार्यक्रमों के साथ जलवायु परिवर्तन से मुकाबला करने के लिए पर्यावरण प्रतिनिधि बनें। हमें बेहतर भविष्य के लिए इस कार्यक्रम में शामिल होना चाहिए और अपने पर्यावरण को सुरक्षित रखने की प्रतिज्ञा करनी चाहिए। यह बात बिल्कुल सत्य है।  हम अध्यापक वर्ग भी अपने – अपने विद्यालयों में पर्यावरण को सुरक्षित रखने के लिए विभिन्न प्रकार की गतिविधियां कराते हैं ताकि बच्चे जागरूक रहें और अपने भविष्य को सुधारने में योगदान दें।

लेकिन फिर भी मुझे ऐसा महसूस होता है कि कहीं न कहीं  कोई चूक रह जाती है जो कि हमारे बच्चे इस प्रकार की गतिविधियों को थोड़ा बड़ा होने पर भूल जाते हैं ऐसा सभी के साथ नहीं होता ,पर फिर भी जैसा कि मैंने देखा है और आप भी मेरी बात पर सहमत होंगे कि कुछ लोग अपने बच्चे को सोसाइटी के बगीचे में उपलब्ध फूलों को तोड़ने के लिए भेज देते हैं  जिसे एक माली बड़े ही प्यार से धूप – ताप में उन्हें सींचता है , उनकी देखभाल करता है , उन कलियों को खिलते हुए देखना चाहता है।  पहले संज्ञान से बच्चा फूल तोड़ने के लिए मना करता है क्योंकि उसे  माता- पिता और अध्यापकों द्वारा बताया जाता है कि फूलों को तोडना नहीं चाहिए और बच्चा इन सभी बातों को मानता है ,उन पर अमल भी करता है , यदि वह किसी अन्य को फूल तोड़ते हुए देखता भी है तो मना करता है , रोने लगता है क्योंकि उसने सीखा है फूलों को भी कष्ट होता है लेकिन जो मेहनत हमने अपने बच्चे के साथ बचपन में की थी वही हम स्वयं मिटाने लगते हैं। या यूँ कहें दूसरे संज्ञान में थोड़ा बड़ा होने पर उसे ही फूल तोड़ने के लिए भेज देते हैं और यही से उस बच्चे की सकारात्मक सोच नकारात्मक रूप में धीरे – धीरे बढ़ने लगती है और हमें पता ही नहीं चलता कि हमने कब अपने बच्चे के मन में नकारत्मकता के बीज बो दिए ।

आज का मानव जगत इतना स्वार्थी हो गया है कि अपनी महत्वाकांक्षाओं के चलते वह निरंतर प्रकृति का आबाध रूप से दोहन करता चला जा रहा  है आज हमें इस बात को समझना होगा कि पर्यावरण या  कि प्रकृति को हमारी नहीं बल्कि हमें अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए प्रकृति के आश्रय की आवश्यकता है जो कि पर्यावरण संरक्षण से ही संभव है।  अतः हमें अपने बच्चों में बचपन से ही पर्यावरण संरक्षण के संस्कार आरोपित करने होंगे और समय – समय पर उन्हें प्रोत्साहन रूपी जल से सिंचित करते रहना होगा ताकि आने वाला भविष्य हरा – भरा एवं प्रदूषण मुक्त हो।

पर्यावरण का महत्त्व हमें आदिकाल से ऋषि – मुनियों द्वारा बताया गया है –

आयुरारोग्यलाभाय जगन्मंगलहेतवे।

दूरतः परिहर्तव्यम प्रयार्वरण दूषणं।।

(अर्थात दीर्घायु होने तथा स्वस्थ रहने हेतु पर्यावरण को दूषित करने वाली वस्तुओं का दूर से ही त्याग करना चाहिए।)

 

साभार-लेखक-रेखा कादियान, (शिक्षिका एपीजे इण्टरनेशनल स्कूल)

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